Thursday, September 30, 2010

रामाचाही विजय... राष्ट्रीय एकतेचे उदाहरण.



राम मंदिराचा प्रक्ष आज तरी निकाली लागला. आणि धुसर असलेल्या वातावरणात थोडी चैतन्याची जाग आली.

काही काळाचे तणावाचे वातावरण पुण्यात होते .

शाळा, महाविद्यालये अर्ध्यावर बंदच होती. दुपारी दोन पासूनच सारे वातावरण तंग होऊ पहात होते.

रस्त्यात सगळीकडेच शुकशकाट होता. मंडई, आप्पा बळवंत चौक, बाजीराव रस्ता, डेक्कन सारीकडे दुकान दारांनी दुकाने अर्ध्यावर उघडलेली तर काहींनी ती कुलूपबंद करून ठेवली होती. शहरात पोलिसांनी जमावबंदीचा आदेश लागू केल्याने त्याची अंमलबजावणी करण्यासाठी पोलिसांच्या गाड्या फिरत होत्या.


गुरूवारी दुपारपासूनच सारे रस्ते थंड पडले होते. गि-हाईकेच नाहीत त्यामुळे तुळशीबागेतले विक्रेत्यांनी आपापला माल बांधून बंदचे वातावरण निर्माण केले होते.


नेहमी वर्दळीची असणारी भोरी आळी ठप्प दिसत होती.
सोन्यामारूती चौकात वाहनांची संख्या नगण्य होती.

एकूणच. वातावरणाने प्रश्राची गंभीरता आपल्याला सांगितली होती.


आता ह्या वादाची मर्यादा सर्वांनीच ओळखली आहे. राष्ट्रीय स्वरूपात रामाची ओळख दर्शविणारे मंदिर आणि मुस्लीमांची मशीद दोनही स्वतंत्र जागेत उभे राहून राष्ट्रीय एकतेचे प्रतिक.. विश्र्वबंधुत्वाचे नाते जगासमोर आदर्श म्हणून ठेवता येईल.

काय होणार आज??????????



नाही तरी आज सारे थोडे धास्तावले आहेत. शाळा बंद तर काही अर्ध्यावर सोडणार आहेत. जागेजागी पोलिसांनी डेरा मांडलाय.

पंतप्रधांनांनी सर्व वृत्तपत्रातून नागरीकांना शांततेचे आवाहन केले आहे. आय टी सेक्टर बंद असल्यातच जमा आहे.


रस्त्यावर शांतता नांदणार आहे. सा-यांच्या मनात धुसर भिती आहे.



आता काय होणार.



फेस बुकवर आज काय होणार याच्याच चर्चेंला प्रतिसाद वाढतोय . वृत्तपत्रांच्या ई आवृत्त्या सर्तकपणे बातमीवर लक्ष ठेऊन आहेत.



एकूणच वातावरण तयार तर झाले आहे.


आता प्रतिक्ष आहे. निकालाची.

विविध धर्माच्या, पक्षांच्या नेत्यांनी अनुयायींना शांततेचे वातावरण ठेवण्याचे आवाहन केले आहेच.

अयोध्या निकालाच्या पार्श्वभूमीवर गानसम्राज्ञी लता मंगेशकर यांनी देशातील जनतेला शांततेचे आवाहन केले आहे. ट्विटर त्यांनी दुपारी साडेबारा वाजेच्या सुमारास हे आवाहन केले आहे.

अयोध्या निकालाच्या बातम्यांनी सर्व न्यूज चॅनल ओसंडून वाहत आहेत. त्यामुळे नागरिकांमध्ये तणावाची परिस्थिती निर्माण झाली आहे. त्यामुळे लतादिदींनी ट्विट करताना म्हटले, अल्ला तेरो नाम ईश्वर तेरो नाम सबको सन्मती दे भगवान... तसेच त्यांनी याला या गाण्याची लिंक सुद्धा जोडली आहे.



काहीतरी होणार....नेमके काय होणार... एकदा निकाल लागू द्या..मग बोलूयात.....


अयोध्येतील वादग्रस्त जमिनीच्या मालकीसंबंधीच्या खटल्याच्या निकालाच्या पार्श्‍वभूमीवर एकगठ्ठा (बल्क)
एसएमएस व एमएमएसवर घालण्यात आलेली बंदी उद्यापर्यंत (शुक्रवार) वाढविण्यात आली आहे.

आत्ता तरी वावारणात गूढ शांतता आहे.....


याविषयीचा एक ब्लॉग आजच वाचनात आले ते मुद्दाम तेत आहे.


अयोध्या: राम-जन्मभूमि या हिन्दू-मुस्लिम दंगों की नींव?

इधर राष्ट्रमंडल खेलों के साथ-साथ देश में अगर किसी चीज़ ने सुर्खियाँ बटोरी है तो वो अयोध्या है. बहुचर्चित अयोध्या मामले में पिछले 60 साल पुराने केस का निर्णय न्यायालय में आज दिन के 3 .30 बजे आने वाला है. 24 तारीख को ही आने वाला ये निर्णय सर्वोच्च न्यायलय के हस्तक्षेप के बाद लंबित होकर अंततः आज आने वाला है. एक बार फिर वो सारी तय्यरियाँ की जा रही हैं जो सब 24 तारीख को आने वाले उस तथाकथित तूफ़ान के लिए की गयीं थी. हालांकि इस निर्णय का कोई व्यापक असर नहीं होने वाला क्यूंकि मामले का सर्वोच्च नयायालय में जाना तय है मगर फिर भी, किसी अनहोनी घटना से पूर्णतया इनकार नहीं किया जा सकता और इसीलिए, असाधारण सुरक्षा इन्तजाम किये जा रहे हैं.
इस अयोध्या मामले ने कहीं न कहीं मुझे भी ख़ासा प्रभावित किया है. जब इसके दोनों संभव फैसलों के बारे में सोचता हूँ तो पाता हूँ कि फैसला जिसके भी पक्ष में जाए हार तो भारत की ही होनी है. अगर फैसला वहां पर मंदिर बनाने का आता है तो सवाल भारत की साम्प्रदायिकता पर उठेंगे कि अपने आप को सेकुलर कहने वाले हिंदुस्तान में इतना बड़ा फैसला हिन्दुओं के पक्ष में कर दिया गया. अगर फैसला मस्जिद बनाने का आता है तो फिर सवाल भारतीय राजनीति पर उठेंगे कि मुस्लिम वोट बैंक को बचाने के लिए ये फैसला उनके पक्ष में कर दिया गया. कुछ भी हो, भारतीय न्याय व्यवस्था शायद इससे पहले इस तरह के सवालों से कभी नहीं घिरी थी. न्यायपालिका पर सवाल उठना अब अपरिहार्य हो चला है.
फैसला कुछ भी आये, फर्क तो हम सब पर जरूर पड़ेगा, ज्यादा नहीं तो थोडा ही सही. आने वाले इस निर्णय और उसके परिणाम की कल्पना करता हूँ और, झूठ नहीं कहूँगा, मन एक बार सिहर जरूर जाता है. डर लग जाता है कि कहीं बम्बई और गुजरात की पुनरावृत्ति न हो जाए. इस डर के साथ जब पूरे मामले को खंगालना शुरू करता हूँ तो यही सवाल मन में बार बार दस्तक देते हैं. आखिर ये अयोध्या क्या है? क्या है इसका मतलब मेरी पीढ़ी के लिए? पूरे अयोध्या काण्ड में मेरी पीढ़ी खुद को कहाँ देखती है?
1947 में भारत के साथ भारत में एक अजीब सी आग ने जन्म लिया था. बंटवारे की उस आग में अपनी आज़ादी को भूल कर न जाने कितने मतवाले हिंदवासी रातों रात 'हिन्दू' और 'मुस्लिम' बन गए थे. एक ऐसी ज्वाला भड़की थी जिसकी लपटों ने हिन्दू-मुस्लिम दंगों की शक्ल लेकर न जाने कितनी जानें ली थी. न जाने कितनी जिंदगियां बर्बाद हुई थी, न जाने कितने परिवार उजड़े थे. उस आग की गर्मी में झुलसता हुआ भारत, फिर भी, अपनी आज़ादी को पाकर आगे बढ़ने के लिए प्रतिबद्ध था. समय के साथ भारत जवान होता गया. नयी पीढ़ियों ने पुरानी पीढ़ी का स्थान लेना शुरू किया. बंटवारे के दंश को झेलने वाली उस पीढ़ी के साथ हिन्दू-मुस्लिम की वो आग भी धीरे धीरे मद्धिम पड़ गयी. अगर दिसंबर '92 न हुआ होता तो शायद मेरी पीढ़ी तक आते आते कोई कभी धर्म की बंदिशों को अपने विकास के रास्ते में रोड़ा नही बनने देता. मगर दिसंबर '92 हुआ और हम सब जानते हैं कि फिर क्या क्या हुआ. राम के नाम पर न जाने क्या क्या घिनौने खेल खेले गए पूरे देश में. जब यह सब हुआ था तब सिर्फ 5 साल का था. सच पूछिए तो ख़ुशी होती है कि सिर्फ 5 साल का ही था, कम से कम मैंने जो भी जाना वो सिर्फ अखबारों में पढ़ा या टीवी पर देखा. उस समय की कोई भी याद मेरे ज़हन में नहीं है. और इस बात के लिए शुक्रगुजार हूँ अपनी उम्र का कि मुझे कुछ नही याद. मेरे लिए तो अयोध्या का सिर्फ एक ही मतलब बनता है. उस बुझती हुई आग की लपटों को फूँक मार कर फिर जिंदा कर देना जो आग बंटवारे के वक़्त सब के सीनों में लगी थी.
राम के नाम पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिन्दू परिषद् ने जिस तरह का काम किया है शायद उसी का कारण है कि हिन्दू होने के बावजूद दिल से कभी इन दोनों से नहीं जुड़ पाया हूँ. हम उस देश में रहते हैं जहां 'जय राम जी की' का इस्तमाल अभिवादन के लिए आता है. हिन्दू हो या मुस्लमान, हर कोई इसे नमस्ते या सलाम के रूप में इस्तेमाल करता है. इसी 'जय राम जी की' उद्घोष के साथ जिस तरह पूरे भारत में सांप्रदायिक दंगों की नींव रखी गयी उससे आज मन में इन शब्दों के लिए भी भिनक पैदा हो गयी है. जिस 'राम-राज' को लाने की बात RSS और VHP करते हैं, वही 'राम-राज' कब 'राम-राजनीति' बन गया, कभी पता ही नहीं चला. अपने राज दरबार में सीता, लक्ष्मण और हनुमान संग बैठे मर्यादा-पुरुषोत्तम राम की तस्वीर कब धनुष उठाये प्रचंड राम में बदल गयी इसका कोई अंदाजा ही नहीं लग सका. कार-सेवा के नाम पर जो कलंक राम की नगरी अयोध्या पर चढ़ गया उस कलंक से छुटकारा पाने की कोई स्थिति मुझे तो नज़र नहीं आती. अपने राजनीतिक फायदे के लिए सभी पार्टियों ने मिलकर जो कुछ किया वो दिल को दुखा देने के लिए काफी है.
अयोध्या की उस ज़मीन का विवाद सदियों पुराना है. न्यायालय तक यह विवाद 60 साल पहले पंहुचा, जब मैं क्या मेरे पिताजी ने भी जन्म नहीं लिया था. इतने समय से जिस निर्णय का इंतज़ार हो उसके लिए उत्सुकता तो मन में रहेगी ही. पता नहीं क्या निर्णय आने वाला है. यथार्थ से दूर देखें तो जी चाहता है कि उस ज़मीन पर ऐसा कुछ बने जो समाज के लिए एक प्रतीक हो, एक उपहार हो. कोई स्कूल बन जाए, कोई अस्पताल बन जाए या कुछ भी. मगर क्या अपने फायदे के लिए मस्जिद तक को गिरा देने वाले इतने से शांत हो जायेंगे. फिर विवाद उठेगा कि अस्पताल का नाम श्री राम अस्पताल रखा जाए या बाबरी हॉस्पिटल. काम करने वाले हिन्दू हों या मुसलमान और न जाने क्या क्या. जब तक फायदा उठाने वाले ये राजनीतिक दल मौजूद रहेंगे तब तक इस विवाद का कोई हल संभव नहीं है. या यूँ कहें कि जब तक इन राजनीतिक दलों के बहकावे में आने के लिए हम तैयार रहेंगे तब तक इसका कोई हल नहीं.
अज दिन में क्या निर्णय आने वाला है इसे भविष्य के गर्भ में ही छुपा छोड़ देते हैं मगर फिर भी, दिल सोचने को मजबूर हो ही जाता है कि उसके बाद क्या होगा. इस बार कहाँ कहाँ दंगे भड़केंगे और कितने लोग बेमौत मारे जायेंगे. एक मन करता है कि कभी ये फैसला आता ही नहीं तो कितना अच्छा होता. मगर काल्पनिक दुनिया से निकल कर हकीकत को देखता हूँ तो लगता है कि ये एक ऐसा तूफ़ान है जो आज नहीं तो कल भारत को झेलना ही है. कभी न कभी तो ये निर्णय आएगा ही. कई लोग आपसी सुलह की वकालत कर रहे हैं. अगर किसी सूरत में ये संभव हो तो सच में स्वागत है इसका मगर फिर, जब बात यथार्थ की आती है तो सब कुछ खोखला ढकोसला लगने लगता है. जिस सुलह की गुंजाईश पिछले 60 सालों में नहीं बन पायी वो अब क्या बनेगी. हाँ इतना जरूर सोचता हूँ कि ये जो आपसी सुलह की वकालत कर रहे हैं, ये यदि इतने जागरूक और परिपक्व हैं तो फिर निर्णय के बाद किसी अनहोनी की बात ही कहाँ उठती है. यही तो वो लोग हैं जिनसे हमें डर है कि न जाने अपने फायदे के लिए निर्णय के बाद क्या क्या गुल खिलाएंगे.
हिन्दू हूँ और इसलिए ये नहीं कहूँगा कि निर्णय में मंदिर बनाने की बात यदि आती है तो मन में ख़ुशी नहीं होगी. खुश जरूर होऊंगा ऐसी सूरत में. मगर, यदि ये राम मंदिर खून से सने पत्थरों की नींव पर बनायीं जाती है तो मैं इसके पक्ष में नहीं हूँ. निर्णय में जो कुछ भी हो, बस इतना चाहता हूँ कि देश को '93 की बम्बई और '02 का गुजरात फिर न देखना पड़े.


ANSHUMAN AASHU
Patna, Bihar, India
http://draashu.blogspot.com/2010/09/blog-post_30.html

Monday, September 27, 2010

भरारी थर्माकोलच्या रामदास माने यांची



खरं तर याला आता दोन-तीन महिने उलटले. मात्र आता आठवू म्हणताना ते क्षण अजूनही स्पष्ट दिसतात.
जेव्हा डीएस कुलकर्णी यांच्या साठीच्या समारंभात सातारकडच्या उद्योजकाचा डिएसके सेल्फ मेड मॅन हा पहिला एक लाखाचा पुरस्कार पुण्याजवळच्या भोसरीतल्या रामदास माने यांना मिळाला तो क्षण.


सूटा बूटातल्या रामदास माने यांनी आपली भरारी ऐकविली...तीही अगदी सातारी शैलीत.... तेव्हाच रामदास माने यांना
भेटण्याचे ठरविले...आणि तो योग आला....



भोसरीतल्या टाटा मोटर्सच्या जवळच्या एमआयडीसीच्या माने इलेक्ट्रीकल्सच्या युनिटमधये प्रवेश केल्यावर तुम्ही थर्माकोलच्या दुनियेत हरखून जाता.
साबुदाणासारख्या शूभ्र दाणेदार पण हलक्या गोळ्यातून इतके जड भासणारे आणि पाण्यात न विरघळणारे . उन्हाळ्यात थंडावा आणणारे आणि थंडीत न तापणारे थर्माकोलचे चौकेनी खांब पाहिले की अजब वाटते. स्वतः या कंपनीवे संचालक रामदास माने यांचे हे विश्व काही वेगळे आहे याची जाणीव होते.

दाण्यातून पाणी आणि हवेच्या प्रेशरमुळे तयार होणा-या भिंतीतून बाहेर पडलेल्या या शुभ्र अशा थर्माकोलच्या ठोकळ्यांच्या सहाय्याने विविध उपयोगी वस्तूंची निर्मिती पाहिली. घर बांधणासाठी तयार होणा-या कमी किंमतीतल्या वीटा पाहल्या आणि या विटा आणि माफक सिमेटच्या मदतीने केलेले घर आणि शौचालये पाहिले की असे घर असताना आपण त्यासाठी किती पैसा आणि वेळ वाया घालवितो ते नजरेत येते.
अधुनिक थर्माकोलच्या सहाय्याने चार तासात घर आणि कुठेही हलविले जाणारे हलके आणि कित्येक वर्ष टिकणारे शौचालय. दोघांचीही उपयुक्तता कळते.

ही मशिनरी तयार तर माने यांनी केलीच पण ती मशिनरी अनेक देशात पाठवून या इको फ्रेंडली पध्दतीच्या निर्मितीचा प्रचार आणि प्रसारही केला. लिम्का बूक ऑफ रेकॉर्डमध्ये जगातले सर्वात मोठे मशिन बनविणारी कंपनीचे नावही झळकले.

४५ देशात मानेच्या कंपनीने बनविलेली मशीन ह्या अनोख्या कामगीरीचा लाभ घेत आहेत.


आज थर्माकोलचे नाव घेतले की रामदास मानेंचे नाव येतेच. ते माने या उद्योजकांच्या यादीत आले खरे पण त्यासाठी त्यांची यशोगाथा त्यांच्या खास सातारी शैलीत ऐकायलाच हवी.


सातारा जिल्ह्यातल्या माण तालुक्यातल्या लोधवडे गावी घरच्या गरीबीतही शिक्षणासाठी राजगार हमीच्या कामावर रोजंदारी करणारा हा उद्योजक.. एक पत्र्याची पेटीत मावेल तेवढे सामान घेऊन सातारला आय यी आयला वायरमनचे काम शिकण्यासाठी आला. दिवसा शिक्षण आणि रात्री सातारा एस टी स्टॅंडवरच्या कॅन्टीन मध्ये काम असे दिवस काढून या परिक्षेत पहिला येतो काय? पुण्याच्या महिंद्र कंपनीत दाखल होतो काय आणि इंजिनियर बनण्याचे स्वप्न ठेउन स्वतःची माने इलेक्ट्रिकल्स ही कंपनी उभी काय करतो.... सारेच अजब आणि धाडसी....


जिद्द आणि चिकाटीच्या जोरावर आज रामदास माने या क्षेत्रात स्वतःचा ठसा उमटविला आहे.


अनेक पुरस्काराने स्न्मानित झालेत. बांधकामाच्या क्षेत्रातल्या थर्माकोलच्या वीटांच्या मागणीसाठी डीएसके, कुमार अशा बांधकाम व्यवसायातल्या वजनदार नावात स्वतःची छाप पाडून बांधकामाचा खर्च कमीकरणारा हा व्यवसाय नावारूपाला आणला.

समाजाचे देणे अंशतः देणे लागतो या न्यायाने लोघवडे गावाचा विकास केला. वारक-यांना कमीत कमी किमतीत शौचालये उपलब्ध करून दिली.

वीस रूपयांच्या बळावर पुण्यात दाखल झालेल्या या रामदास मानेंचे उद्योजक म्हणून स्वप्न साकारलेले ज्यांनी अनुभवले ते तर सुखावतीलच पण आजच्या व्यवसायात येऊ पाहणा-या तरूणांनाही हा आदर्श नवी भरारी घेण्यासाठी उपयोगी पडणारा आहे.



सुभाष इनामदार, पुणे

subhashinamdar@gmail.com
9552596276


ते स्वतःची वाटचाल सांगताहेत त्यातून अधिक माहिती मिळेलच....