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जब तक शांती न चल सकी, करती रही विवाद
किये शांती के नाम पर, झगडे और फसाद
मेरा मत ही सत्य है, अन्य सभीका झूट
जब तक यूं चिंतन चले, रहे शांती सुख रुठ
शांती न तर्क वितर्क है, शांती न वाद विवाद
वैर तजे सो ही चखे, स्वयं शांती का स्वाद
उंची मेरी मान्यता, हीन पराया ज्ञान
अपने ही राज्य में ढूंढो, शांती का बयान
शांती देव है, शांती रुप है, परमात्माका विशाल
ये मूर्ख, दूत बनो शांती के इस जगमे बेमिसाल
घात करती है मानव की ये अणुशक्ती का दक्ष,
किसी की मत सुन, किसीका मत सोच, बचाव मानव का लक्ष
फिर देख ये शांती कैसे दिन लेकर आएगी
यहां सोने की चिडीयां भी वापस सपने लाएगी...
सौ. सरोज सुभाष इनामदार, पुणे
- १९९८
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