Friday, June 3, 2011
मानसिक आंदोलने झेलताना
भावना जपताना
मने करपली जातात
नापिक जमिनीत बरसला तो
केवल ओलावा उपयोगी पडेल ?
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जनता भरडली जाते आहे ....
उपोषण करणारे
सुखावले जातात
कशाची ही सुरवात ?
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काल बरसला तो
भिजुनही गेला
धारा मात्र मनातल्या
तशाच बरसत राहिल्या
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ढग भरलेले ...मन उदास
चुकून उन्हाचे ..कवडसे
अंगांत घाम.. विरलेले थेंब
आशेचा किरण ..प्रकाशाचे गीत
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उन्हाची झळ
पाण्याची तहान
सावलीची माया
पोटाची भूक
आसुसलेली धरणी
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दूर गेलास की वाटते जवळ असावे
जवळ आलास की काय बोलू असे ?
ही हुरहुर की मानसिक आंदोलने?
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आज असणारा उद्या गेला
काय वाटत असेल ?
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साहित्य माणसाला विचार देते
विचार मनात प्रेरणा निर्माण करते
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मानसिक शांतता आली
तरच खरे सुख अनुभवता येते
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subhash inamdar, PUne
9552596276
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